नई दिल्ली, 08 फरवरी। दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आखिरकार वह करिश्मा कर दिखाया, जिसकी कोशिश में वह पिछले 27 वर्षों से लगी थी। दो दशकों से दिल्ली में बीजेपी का विजय रथ विधानसभा चुनाव आते ही थम जाता था, लेकिन 8 फरवरी 2025 को राजधानी की सियासत में नया इतिहास लिखा गया। बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल कर दिल्ली में अपनी सत्ता वापसी सुनिश्चित की।
27 साल का वनवास खत्म
1998 में दिल्ली की सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी ने अपनी कद्दावर नेता सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया था, लेकिन तब कांग्रेस ने बाजी मार ली थी। उसके बाद बीजेपी के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती बना रहा। 2013 में भी उसे सत्ता से कुछ कदम दूर रहना पड़ा, जबकि 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी (आप) के अरविंद केजरीवाल ने करप्शन और लोकल गवर्नेंस के मुद्दे पर बीजेपी को पूरी तरह रोक दिया। लोकसभा चुनावों में तो बीजेपी ने लगातार शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे सफलता नहीं मिल रही थी।
2024 लोकसभा से 2025 विधानसभा तक जारी रहा भगवा परचम
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली की सभी सात सीटों पर लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की थी। यह साफ संकेत था कि राजधानी के मतदाताओं का झुकाव बीजेपी की ओर बढ़ रहा है। महज 11 महीने बाद 2025 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने यही लय बरकरार रखी और दिल्ली में ऐतिहासिक जीत दर्ज की। दोपहर 2 बजे तक के आंकड़ों के अनुसार बीजेपी 46 सीटों पर आगे थी और उसका वोट शेयर 46.29% तक पहुंच गया था। यह दिल्ली विधानसभा चुनावों में अब तक बीजेपी का सबसे बड़ा जनाधार है।
1993 के रेकॉर्ड को भी पीछे छोड़ा
दिल्ली में बीजेपी का यह विजय अभियान कई मायनों में ऐतिहासिक है। 1993 में पार्टी ने 42.8% वोट शेयर के साथ 49 सीटें जीती थीं। हालांकि इस बार सीटों की संख्या थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन वोट शेयर के मामले में बीजेपी ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
दिल्ली की राजनीति में नया मोड़
इस जीत के साथ दिल्ली की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है। पिछले एक दशक से राजधानी में आप सरकार का वर्चस्व था लेकिन 2025 का जनादेश साफ संदेश देता है कि दिल्ली के मतदाताओं ने बदलाव को चुना है। बीजेपी का फोकस इस बार संगठन के मजबूत नेटवर्क, मोदी सरकार की लोकप्रियता, हिंदुत्व और विकास के एजेंडे पर रहा।
केजरीवाल को बड़ा झटका
आम आदमी पार्टी जिसने 2015 में 67 सीटें जीतकर और 2020 में 62 सीटों के साथ अपनी ताकत दिखाई थी, इस बार गहरे संकट में आ गई। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी को इस चुनाव में बड़ा झटका लगा। भ्रष्टाचार के आरोपों और नए राजनीतिक समीकरणों के कारण AAP की पकड़ कमजोर पड़ी, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला।
कांग्रेस हाशिये पर
दिल्ली की राजनीति में कभी मजबूत पकड़ रखने वाली कांग्रेस इस बार भी हाशिए पर ही रही। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली थी और इस बार भी पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई। मतदाताओं ने मुख्य मुकाबला बीजेपी और AAP के बीच रखा, जिससे कांग्रेस का जनाधार और कमजोर हो गया।
बीजेपी की रणनीति और भविष्य की राह
बीजेपी की यह जीत सिर्फ एक चुनावी सफलता नहीं है, बल्कि यह उसकी रणनीतिक जीत भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, केंद्रीय योजनाओं का असर, दिल्ली में स्थानीय नेतृत्व को मजबूत करना और संगठन को नए सिरे से खड़ा करना – इन सभी ने मिलकर बीजेपी की जीत का आधार तैयार किया।