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फिल्म समीक्षा: लॉकडाउन के समय रास्ते में फंसी बारात की कहानी है 'कुसुम का बियाह'

Himgiri Samachar:

कोरोना महामारी और लॉक डाउन के बैकग्राउंड पर बनी निर्देशक शुवेंदु राज घोष की फिल्म ‘कुसुम का बियाह’ काफी रियलिस्टिक है। एक सच्ची घटना पर बनी इस फ़िल्म की कहानी में दिलचस्पी भी है, दर्द है, कॉमिक क्षण भी हैं। इस शुक्रवार एक मार्च को बड़े पर्दे पर रिलीज हो रही ‘कुसुम का बियाह’ के बारे में आइए जानते है कैसी है यह फिल्म।

 

 

 

कोरोनाकाल में लॉकडाउन के समय कई परिवार बुरी तरह फंस गए थे। यह फ़िल्म बिहार से झारखंड जा रही एक बारात के रास्ते में फंस जाने की सच्ची घटना पर आधारित है। फिल्म में लॉक डाउन के दौरान दो राज्यों के बॉर्डर पर फंसी कुसुम की बारात को बड़े ही एंटरटेनिंग ढंग से दर्शाया गया है। बहुत सारी परेशानी के बाद फ़िल्म के नायक सुनील की शादी तय होने पर परिवार के लोग बहुत खुश होते हैं लेकिन शादी के दिन अचानक देश भर में लॉक डाउन लग जाता है। अब ऐसे हालात में क्या होता है यही फ़िल्म का सार है।

 

 

 

फ़िल्म के सभी कलाकारों ने प्रभावी अभिनय किया है। निर्देशक शुवेंदु राज घोष का काम भी सराहनीय है। ऐसी कहानी को पर्दे पर इन्होंने बखूबी पेश किया है। कई सीन जहां आंखों में नमी ले आते हैं तो कई बार हंसी भी आ जाती है। निर्देशक ने फ़िल्म के जरिये दर्शकों को पूरी तरह बांध कर रखा है।

 

फ़िल्म में कुसुम की भूमिका सिक्किम की सुजाना दार्जी ने बहुत ही रियल ढंग से निभाई है। लवकेश गर्ग ने कुसुम के पति के रोल में जान डाल दी है। निर्माता प्रदीप चोपड़ा की भी फ़िल्म में महत्वपूर्ण भूमिका है। उनके अभिनय में बहुत स्वाभाविकता है। एक गरीब परिवार के मुखिया के किरदार को उन्होंने पर्दे पर जीवंत कर दिया है। एक दृश्य में वह अपनी बहू को उनके कंगन बेचने से मना करते हैं, जो बहुत मार्मिक है। इनके अलावा राजा सरकार, सुहानी बिस्वास, पुण्य दर्शन गुप्ता, रोज़ी रॉय भी अहम किरदारों में दिखाई देते हैं।

 

 

 

फिल्म की कहानी, पटकथा और संवाद लेखक विकाश दुबे और संदीप दुबे हैं, जबकि इसके गीतकार संगीतकार भानु प्रताप सिंह हैं। फ़िल्म के कार्यकारी निर्माता चंदन साहू, डीओपी सौरव बनर्जी, एडिटर राज सिंह सिधू हैं। सीमित बजट और संसाधनों में भी कैसे एक अच्छी कहानी को पर्दे पर प्रस्तुत किया जा सकता है, इसके लिए आपको फ़िल्म ‘कुसुम का बियाह’ देखना चाहिए।

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